पराली खत्म करने का समाधान


पराली से होने वाले प्रदूषण से निपटने का तरीका कृषि वैज्ञानिकों (Agriculture Scientist) ने 2 साल पहले ही खोज लिया था. खेती-किसानी पर रिसर्च करने वाली सबसे बड़ी सरकारी संस्था भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (Indian Agricultural Research Institute) पूसा के वैज्ञानिकों ने एक दवा बनाई थी. सवाल यह उठ रहा है कि इतना पहले हुई महत्वपूर्ण खोज की जानकारी अब तक ज्यादातर किसानों (Farmers) तक क्यों नहीं पहुंच सकी है. पराली की समस्या से निपटने के लिए एक तरफ लाखों की मशीनों का बाजार आबाद हो रहा है. उन मशीनों पर सब्सिडी दी जा रही है. तो दूसरी ओर सिर्फ पांच रुपये में पराली को गलाकर खाद बना देने वाले कैप्सूल (Pusa Waste Decomposer) की जानकारी ही किसानों तक नहीं पहुंची.

सस्ते उपाय मौजूद तो महंगी मशीनों का प्रमोशन क्यों?
कृषि विशेषज्ञ देविंदर शर्मा कहते हैं "कृषि मंत्रालय (Ministry of Agriculture)  के कुछ अधिकारी और के कुछ वैज्ञानिक सस्ते उपायों की जगह पराली निस्तारण के लिए मशीनों के महंगे विकल्प को प्रमोट कर रहे हैं. पराली कटाई वाली बनाने वाली कंपनियों का एक प्रेशर ग्रुप है जो सस्ती चीजों को प्रमोट नहीं होने देता."उधर, राष्ट्रीय किसान संघ के फाउंडर मेंबर बीके आनंद ने भी इस मुद्दे पर सवाल उठाया है. उन्होंने कहा कि जब पूसा और  National Centre of Organic Farming के वैज्ञानिकों ने पराली को सड़ाकर खाद बनाने वाला वेस्ट डी-कंपोजर (Waste Decomposer) बना लिया है तो फिर मशीनों को क्यों प्रमोट किया जा रहा है.

15 दिन के लिए क्यों डाला जा रहा किसानों पर बोझ
शर्मा के मुताबिक "पराली तो कृषि उपकरण बनाने वालों के लिए अपनी मशीनें खेतों में डंप  करने का मौका है. पंजाब में 1 लाख ट्रैक्टरों की जरूरत होते हुए 4.5 लाख ट्रैक्टर मौजूद हैं. समझ में नहीं आता कि किसानों पर और मशीनों का बोझ क्यों डाला जा रहा? पंजाब में किसान के कर्ज के पीछे ट्रैक्टरों का बोझ ही है. पराली की समस्या तीन-चार हफ्ते ही चलती है. ये मशीनें साल के ज्यादातर समय बेकार पड़ी रहेंगी.


"क्या कहते हैं मंत्री
इस बारे में जब हमने केंद्रीय कृषि राज्यमंत्री कैलाश चौधरी से बातचीत की तो उन्होंने कहा कि हमने पूसा द्वारा विकसित इस कैप्सूल के प्रचार-प्रसार के लिए अधिकारियों को कहा है. एक बार और निर्देश दिया जाएगा ताकि यह किसानों तक पहुंच जाए. हमारी कोशिश होगी कि कृषि विज्ञान केंद्रों के जरिए इसका भरपूर प्रचार हो. ताकि पराली की समस्या से सस्ते में निजात मिले.