किसानो ने किया मोदी सरकार का विरोध


अखिल भारतीय किसान सभा की जिला कौंसिल ने आरसीईपी पर मोदी सरकार के हस्ताक्षर करने के कदम का विरोध किया है। उन्होंने कहा कि मोदी सरकार ने छोटे तथा मध्यम दर्जे के किसानों व मजदूरों की अनदेखी कर हस्ताक्षर किये हैं। इस फैसले के खिलाफ जल्दी ही किसान-मजदूर सड़कों पर उतरेंगे। किसान सभा की जिला कौंसिल के सचिव भगवान सिंह राणा का कहना है कि भारत में डेयरी क्षेत्र 10 करोड़ किसान परिवारों को रोजी-रोटी मुहैया करवाता है। इतने वर्षों के दौरान जिस सहकारिता क्षेत्र का निर्माण हुआ है। उसके चलते दूध की 71 फीसदी कीमतें इन किसान परिवारों को वापस मिल जाती हैं। अगर भारत ने दूध और दुग्ध उत्पादों के आयात पर मौजूदा 64 फीसदी कर वापस ले लिया, जैसी की आरसीईपी की मांग है, तो घरेलू बाजार में दूध की कीमतें बुरी तरह से गिर जाएगी। जिससे डेयरी किसानों के हितों को नुकसान पहुंचेगा। भारत में स्किल्ड मिल्क पाउडर की 260 रू प्रति लीटर है। जबकि न्यूजीलैंड में 160 से 170 रू प्रति लीटर है। जो कि सबसे बड़ा दुग्ध उत्पाद देश है। आरसीईपी तकरीबन सभी कृषि उत्पादों को कवर करता है। जिनमें सब्जियां, मछली, अनाज व मसाले शामिल हैं। मोदी सरकार अगर इस पर सहमत हो जाती है, तो इसका सबसे बुरा प्रभाव सीमांत किसानों, खेत मजदूरों पड़ेगा। जो कि कृषि समुदाय का 85 फीसदी है। अगर भारत आरसीईपी में भागीदार बन गया तो कृषि के साथ-साथ घरेलु अर्थ व्यवस्था पर भी बेहद बुरा असर पड़ेगा। भारतीय बाजारों को दूसरे देशों के सस्ते उत्पादों से पाट दिया जायेगा। डेयरी क्षेत्र बुरी तरह से तबाह हो जायेगा। नव उदारवादी नीतियां दुनिया भर में तबाही लेकर आई हैं। भारतीय व वैश्विक अर्थव्यवस्था सघन होती मंदी का सामना कर रही है।